विदेशी मुद्रा रोष

ऐसे अमर कवियों को संबोधित / ओम भारती
समयविद्ध नहीं, समयसिद्ध आप हैं
समय के पार हैं, परे हैं
प्रतिकृत नहीं होते अपने समय से
भड़कते नहीं आप
कड़कते, फड़कते या तड़कते भी नहीं
किसी पर
विदेशी मुद्रा वाले अनिवासी भारतीय
बज़ट, बुश, बारूद, मुद्रा-स्फीति-दर
मंदी, मँहगाई और शोषण की नीति पर
कुरीति पर अनीति पर
बेईमान दलालों, देशतोड़ू लालों पर
किसी भी खलनायक पर
अकर्मण्य नायक पर
नहीं आप देखे गए नाराज़
कभी नहीं आपने ऊँची की आवाज़
कवि जी क्या आपने कभी ख़ुद से पूछा
आपको क्यों नहीं आता है गुस्सा
क्यों नहीं आपमें वह
मूल मानवीय गुण या कमज़ोरी
आक्रोश, रोष या ताप के समीप का
कोई भी लक्षण
क्यों नहीं महाभाग
आपमें वो जन-सुलभ छोटी सी आग ?
और आग ही नहीं है कवि
तो पानी भी कहाँ होगा
शेष तीन तत्व भी मनुष्य के
क्यों ढूँढ़े जायेंगे आपमें
इस अधम मर्त्य की बधाई स्वीकारें
कि आप अमर होंगे अवश्य ही।
(1991)
विदेशी मुद्रा रोष
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यमुनानगर: किसानों ने अर्धनग्न होकर प्रदर्शन कर रोष मार्च निकाला
यमुनानगर, 28 सितंबर (हि.स.)। भारतीय किसान यूनियन चढूनी के द्वारा बुधवार को हरियाणा प्रदेश में जिला स्तर पर अर्धनग्न होकर प्रदर्शन कर रोष मार्च निकाला गया और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। सबसे पहले किसानों ने यमुनानगर के शहीद भगत सिंह चौक पर जाकर भगत सिंह की मूर्ति पर फूल मालाऐ डाल कर नमन किया और वहां पर पड़ी गंदगी को साफ किया।
वहीं चौक पर भगत सिंह की मूर्ति की साफ सफाई करते रोष स्वरूप निगम कार्यालय में पहुंचकर किसानों ने निगम और मेयर के खिलाफ नारेबाजी की। इसके बाद किसान कन्हैया चौक से इकट्ठे विदेशी मुद्रा रोष होकर कपड़े निकाल कर अर्धनग्न पैदल मार्च करते हुए जिला उपायुक्त के कार्यालय पर गए और वहां पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की कॉपियां और हरियाणा सरकार के आदेशों की कॉपियों की प्रतियां जलाई। किसानों ने मांग की कि सरकार किसानों को शामलात जमीनों का मालिकाना हक दें। किसानों ने मुख्यमंत्री के नाम तहसीलदार को ज्ञापनभी सौंपा। किसानों का कहना है कि बरसात और बीमारी के कारण जो किसानों की फसल बर्बाद हुई हैं उनका मुआवजा जल्द दिया जाए और किसानों ने जो बैंक से ऋण लिया हुआ है उसमें किसानों को राहत दी जाए।
प्रदर्शन की अध्यक्षता जिला अध्यक्ष संजू गुंदियाना ने कहा कि आज किसानों ने आदेशों की प्रतियां जलाई है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार अब भी नही जागी तो अगला कदम हमारा विधानसभा होगा। जहां पर हम विधानसभा के अंदर जाकर सरकार से पूछेंगे कि जब सरकार सुप्रीम कोर्ट में केस हार चुकी थी क्यों दोबारा अपील में सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच पर गई।इस मौके पर महासचिव गुरवीर नेकी, डायरेक्टर मनदीप रोड छप्पर सहित बड़ी संख्या में किसान शामिल रहें।
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Economic Crisis in China: भारत से पंगा लेने वाले चीन की हुई बुरी दुर्गति, दूसरे देशों विदेशी मुद्रा रोष को कर्जा देते-देते क्या हो गया कंगाल? हो सकती है श्रीलंका जैसी हालत
Economic Crisis in China: हालात अब ऐसे हो चुके हैं कि चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भी खत्म हो चुका है। विशेषज्ञों की मानें तो अगर चीन में यह सिलसिला यूं ही जारी रहा, तो आगामी दिनों में चीन में भी श्रीलंका जैसी स्थिति देखने को मिल सकती है। हालांकि, अभी-भी चीन के कई इलाकों में शी जिनपिंग सरकार की कूनीतियों के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं।
नई दिल्ली। यह दुर्भाग्य है कि कभी-कभी किसी लोकतांत्रिक देश में भी सरकार अपने जेहन में यह मुगालते पाल बैठती हैं कि उनका शासन शाश्वत रहने वाला है, लिहाजा अब उन्हें अधिकार मिल गया है, कोई भी फैसला लेने का। उन्हें अधिकार है, देश की आर्थिक व्यवस्थाओं का पलीता लगाने का। उन्हें अधिकार है, लोगों के अधिकारों को कुचलने का। उन्हें अधिकार है, लोगों के भविष्य के साथ खेलने का। लेकिन वो कहते हैं ना कि किसी भी राजनीतिक व्यवस्था में अंतिम शासन व्यवस्था शक्ति अगर किसी के पास होती है, तो वो जनता होती है, लिहाजा अगर जनता का रोष अपने चरम पर पहुंच गया, तो जलजला उठाना तय माना जाता है, जैसा कि बीते दिनों श्रीलंका में देखने को मिला था। श्रीलंका में सरकार की कूनीतियों के खिलाफ जनता सड़क पर आ गई। सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नतीजा यह हुआ रानिल विक्रमसिंघे से लेकर गोटबाया राजपक्षे तक को अपनी सत्ता गंवानी पड़ गई।
अब आप बतौर पाठक यह सब कुछ पढ़ने के बाद मन ही मन सोच रहे होंगे कि आखिर आप हमें श्रीलंका की आर्थिक दुश्वारियों से क्यों रूबरू करवा रहे हैं। तो आपको बता दें कि श्रीलंका जैसी स्थिति अब चीन में भी देखने को मिल सकती है। विशेषज्ञों की मानें तो कई देशों को आर्थिक मदद देते-देते अब चीन का आर्थिक खजाना अब खत्म होने की कगार पर आ चुका है। हालात अब ऐसे हो चुके हैं कि चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भी खत्म हो चुका है। विशेषज्ञों की मानें तो अगर चीन में यह सिलसिला यूं ही जारी रहा, तो आगामी दिनों में चीन में भी श्रीलंका जैसी स्थिति देखने को मिल सकती है। हालांकि, अभी-भी चीन के कई इलाकों में शी जिनपिंग सरकार की कूनीतियों के खिलाफ मोर्चा खोला जा चुका है। आइए, हम आपको कुछ उन प्रोजेक्ट्स के बारे में विस्तार से बताते हैं, जो कि चीन को आर्थिक गर्त में ढकलने में अहम माने जा रहे हैं।
आपको बता दें कि चीन में 1949 में बीआरआई सबसे बड़ी योजना थी। इस योजना के अंतर्गत चीनी सरकार ने कई विदेशी मुद्रा रोष योजनाओं की शुरुआत की थी। जिसका कथित तौर पर मुख्य मकसद देश में विकास की बयार बहाना था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस योजना के अंतर्गत चीनी सरकार ने कई देशों को आर्थिक मदद मुहैया कराई थी। चीन सरकार का मानना था कि ऐसा करके वो दूसरे देशों के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ कर सकता है। हालांकि, 2013 में इस योजना को पहली बार प्रस्तावित किया गया था। इसके बाद इस योजना के अंतर्गत कई विकासशील देशों को 800 बिलियन से भी अधिक की अदायगी की गई थी। वहीं, न्यूयॉर्क स्थित एक रिसर्च ग्रुप रोहडियम की विदेशी मुद्रा रोष मानें तो चीन के बैंकों ने साल 2020 और 2021 में 52 बिलियन डॉलर का कर्ल दिया था। पहले दो वर्षों की तुलना में ये 16 फीसदी ज्यादा था।
उधर, अगर चीन के बैंकों की बात करें, तो वे अपने ग्राहकों को पैसे देने की स्थिति में नहीं हैं। बीते दिनों चीन के हेनान प्रांत में लंबी कतारें देखने को मिली थी। ये सभी लोग अपना रकम लेने की जद्दोजहद में लगे हुए थे, लेकिन बैंक इनके पैसे वापस देने की स्थिति में नहीं दिख रहा था। जिसकी वजह से कई ग्राहकों ने बैंक के खिलाफ अपने रोष का प्रदर्शन भी किया। उधर, चीन की कई कंपनियों में ताले जड़े जा चुके हैं। बेरोजगारी अपने चरम पर पहुंच चुकी है। लोगों के पास नौकरियां नही हैं। वहां रहने वाले युवाओं को अपना भविष्य अब अंधकारमय नजर आ रहा है। कई जगहों पर शी जिनपिंग के खिलाफ युवाओं में रोष भी देखने को मिल रहा है। कई जगहों पर युवा वर्ग खुलेआम शी जिनपिंग सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए नजर आ विदेशी मुद्रा रोष रहे हैं। लेकिन, चीन में बदहाल स्थिति यथावत जारी है। अब ऐसे में सरकार आगामी दिनों में वहां की बदहाल स्थिति को दुरूस्त करने की दिशा में क्या कुछ कदम उठाती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।
विदेशी मुद्रा रोष
कोलंबो
आजादी के बाद सबसे खराब दौर से गुजर रहे श्रीलंका (Sri Lanka crisis) ने विदेशी कर्ज पर हाथ खड़े कर दिए हैं। श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के बेलआउट की उम्मीद कर रहा है। लेकिन इससे पहले उसने कहा कि वह विदेशी कर्ज (External Debt) को चुकाने की स्थिति में नहीं है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान चीन को होगा क्योंकि श्रीलंका पर सबसे ज्यादा कर्ज उसी का है। इसी कर्ज के कारण श्रीलंका आज इस कगार पर पहुंचा है। देश में आर्थिक संकट हर गुजरते दिन के साथ गहराता रहा है और जरूरी चीजों की भारी किल्लत हो गई है।
श्रीलंका के वित्त मंत्रालय ने कहा कि देश विदेशी कर्ज के भुगतान की स्थिति में नहीं है। इनमें विदेशों से लिया गया लोन भी शामिल है। एएफपी के मुताबिक श्रीलंका पर करीब 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान चीन का होगा क्योंकि उसी ने श्रीलंका को सबसे ज्यादा कर्ज दे रखा है। श्रीलंका के कुल विदेशी कर्ज में चीन की हिस्सेदारी करीब 10 फीसदी है। चीन के बाद जापान और भारत का श्रीलंका पर सबसे अधिक कर्ज है।
भूखों मरने की नौबत
2.2 करोड़ की आबादी वाले श्रीलंका में पिछले कई महीनों से हालात बेहद खराब बने हुए हैं। देश में जरूरी चीजों के दाम आसमान पर पहुंच गए हैं। विदेशी मुद्रा की भारी कमी के कारण पेट्रोल-डीजल (Petrol-diesel) का आयात नहीं हो पा रहा है। कई घंटों तक बिजली गुल रहती है, पेट्रोल पंपों पर लंबी-लंबी लाइनें लगी हैं। इससे लोगों में रोष लगातार बढ़ता जा रहा है। गुस्साए प्रदर्शनकारी सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर दबाव बढ़ता जा रहा है। देश की संसद के स्पीकर ने हाल में कहा था कि देश के लोगों की भूखों मरने की नौबत आ गई है।
देश सेंट्रल बैंक के गवर्नर पी. नंदलाल वीरसिंघे ने कहा कि हमें जरूरी चीजों के आयात पर फोकस करने की जरूरत है और विदेशी कर्ज को लेकर ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। हालांकि यह फौरी उपाय होना चाहिए। सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम कर्ज को रिस्ट्रक्चर करें और एक हार्ड डिफॉल्ट से बचें। श्रीलंका अगले सप्ताह एक डेट प्रोग्राम के लिए आईएमएफ के साथ बातचीत शुरू करने वाला है।
श्रीलंका पर कर्ज
मार्च के अंत में श्रीलंका का विदेशी भंडार 1.93 अरब डॉलर था जबकि इस साल उसे लगभग चार अरब डॉलर के विदेशी कर्ज का भुगतान करना है। इसमें जुलाई में मैच्योर होने वाला एक अरब डॉलर का इंटरनेशनल सॉवरेन बॉन्ड भी शामिल है। जेपी मॉर्गन के विश्लेषकों का अनुमान है कि श्रीलंका की ग्रॉस डेट सर्विसिंग 2022 में 7 अरब डॉलर होगी और चालू खाता घाटा लगभग 3 अरब डॉलर होगा।
श्रीलंका के इस हालत के लिए चीन से लिए गए भारी कर्ज को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। कोरोना महामारी के कारण श्रीलंका का टूरिज्म सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ था। इसे देखते हुए श्रीलंका ने चीन से अपने कर्ज को रिशेड्यूल करने की अपील की थी लेकिन चीन ने इससे साफ इन्कार कर दिया था। चीन के कर्ज में फंसे कई दूसरे देशों की भी आर्थिक स्थिति डगमगा रही है। इनमें पाकिस्तान, मेडागास्कर, मालदीव और ताजिकिस्तान शामिल हैं।
The Naradmuni Desk
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Sri lanka Crisis: जनता के भारी रोष और प्रदर्शन के बीच आज रात देश को संबोधित करेंगे PM महिंदा राजपक्षे
श्रीलंका में संकटपूर्ण स्थिति के बीच लोग सत्ता से राजपक्षे परिवार की विदाई चाहते हैं, वहां रोजाना प्रदर्शन किए जा रहे हैं. सख्ताहाल स्थिति के बीच श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे आज रात राष्ट्र के नाम संबोधन करने वाले हैं.
TV9 Bharatvarsh | Edited By: प्रदीप शुक्ला
Updated on: Apr 11, 2022 | 4:12 PM
श्रीलंका में आर्थिक संकट (Sri lanka Crisis) की स्थिति विकराल रूप धारण करती जा रही है. लोगों को खाने-पीने की जरूरी चीजों के लिए भी खासा संघर्ष करना पड़ रहा है. संकटपूर्ण स्थिति के बीच वहां पर लोग श्रीलंका (Sri lanka) की विदेशी मुद्रा रोष सत्ता से राजपक्षे परिवार की विदाई चाहते हैं, वहां रोजाना विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं. सख्ताहाल स्थिति के बीच वहां पर सियासी संघर्ष भी तेज हो गया है, इस बीच श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे (Mahinda rajapaksa) आज रात राष्ट्र के नाम संबोधन करने वाले हैं.
आर्थिक संकट की वजह से बने राजनीतिक संकट के बीच वहां पर स्थितियां सुधारने को लेकर प्रयास जारी हैं. स्थानीय मीडिया का दावा है कि श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे आज रात राष्ट्र के नाम संबोधन करेंगे. उनका यह संबोधन ऐसे समय हो रहा है श्रीलंका में आर्थिक संकट से निपटने के लिए सर्वदलीय अंतरिम सरकार बनाने के सारे प्रयास अब तक सफल नहीं हो सके हैं. इस संबंध में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके सत्तारूढ़ श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) गठबंधन के निर्दलीय सांसदों के साथ हुई बातचीत बेनतीजा रही.
11 दलों के गठबंधन के साथ चर्चा
राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने 11 पार्टियों के गठबंधन को देश की खराब आर्थिक स्थिति पर चर्चा के लिए बुलाया था, जिसमें से 42 निर्दलीय सांसद हैं. निर्दलीय समूह के सदस्य वासुदेव नानायकारा ने आज सोमवार को कहा, ‘हमने अपने पत्र पर चर्चा की, जिसमें हमारे प्रस्ताव के संबंध में 11 बिंदु थे, बातचीत जारी रहेगी.’ उन्होंने और 41 अन्य ने पिछले हफ्ते सत्तारूढ़ गठबंधन से अलग होने की घोषणा की थी, लेकिन विपक्ष में शामिल होने से इनकार कर दिया था.
निर्दलीय समूह के एक अन्य सदस्य अनुरा यापा ने गोटावाया राजपक्षे के साथ बैठक से पहले कहा था कि उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना की उपस्थिति में मुख्य विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा से मुलाकात की थी. अनुरा यापा ने कहा, ‘दोनों पक्षों ने बातचीत की पर इसका कोई नतीजा नहीं निकला.’
शेष मंत्रियों की नियुक्ति में होगी और देरी
सरकारी सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल के शेष 26 सदस्यों की नियुक्ति में और देरी होगी. पिछले हफ्ते पूरे मंत्रिमंडल ने इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद राजपक्षे ने केवल चार मंत्रियों को नियुक्त किया है. यह सब तब चल रहा है जब श्रीलंका साल 1948 में ब्रिटेन से आजाद होने के बाद से सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है.
इस बीच, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग को लेकर चल रहे सरकार विरोधी प्रदर्शन आज सोमवार को भी जारी रहे. एक प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘यह नई पीढ़ी है, जो यहां विरोध कर रही है, हम आजादी के बाद से पिछले 74 सालों में विदेशी मुद्रा रोष सभी राजनीतिक गलतियों के लिए जवाबदेही चाहते हैं.’ माना जा रहा है कि 13 और 14 अप्रैल को राष्ट्रीय नव वर्ष का जश्न मनाने के लिए लोग राजधानी कोलंबो के बाहरी इलाकों में एकत्रित होंगे.
कई जगहों पर राजपक्षे के समर्थन में भी आए लोग
देश के कुछ हिस्सों में राजपक्षे के समर्थन में भी लोग एकत्रित हुए. उन्होंने राजपक्षे परिवार से सत्ता में बने रहने की अपील की। एक समर्थक ने तख्ती पर लिखा था, ‘हम राष्ट्रपति के आभारी हैं, जिन्होंने वैश्विक महामारी से हमारे जीवन को बचाने के लिए टीके उपलब्ध करावाएं.’
श्रीलंका में बड़ी संख्या विदेशी मुद्रा रोष में लोग लंबे समय से बिजली कटौती तथा गैस, भोजन और अन्य बुनियादी सामानों की कमी को लेकर हफ्तों से विरोध प्रदर्शन कर रहे विदेशी मुद्रा रोष हैं. राष्ट्रपति और उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे, राजनीतिक रूप से शक्तिशाली अपने परिवार के सार्वजनिक आक्रोश का केंद्र बनने के बावजूद सत्ता पर काबिज हैं.
राष्ट्रपति ने सरकार के कदमों का बचाव करते हुए कहा कि विदेशी मुद्रा संकट के लिए उनकी सरकार जिम्मेदार नहीं है और आर्थिक मंदी का मुख्य कारण वैश्विक महामारी है, जिसके कारण मुख्य तौर पर पर्यटन के जरिए देश में आने वाली विदेश मुद्रा प्रभावित हुई है.