अपने दलाल दर

सुन कर सेठ मधुसूदनजी गादी से उतर कर फकीरचन्दजी के सामने आ खड़े हुए। अपने हाथों में उनके दोनों हाथ भींचकर, रुँधे गले से बोले - ‘फकीरचन्दजी! मेरे मन में क्या था, यह या तो मैं जानता हूँ या मेरा भगवान। लेकिन आज आपने अपनी और मेरी, दोनों की लाज रख ली। दोनों को बचा लिया। आपसे मैं पहले से ही बेफिकर था। लेकिन आज और बेफिकर हो गया। गले-गले तक भरोसा हो गया कि अब मुझे बाजार से कोई नहीं उठा सकता।’
ऐसे सबसे पहले ऑनलाइन तत्काल टिकट बुक कर लेते हैं दलाल
आम आदमी रेलवे के तत्काल टिकट की लाइन में रात भर लगता है लेकिन फिर भी नंबर नहीं आता। सुबह जल्दी जागकर मिनट दर मिनट ऑनलाइन टिकट बुक करने के लिए आठ बजने का इंतेजार करते हैं और फिर भी आईआरसीटीसी की वेबसाइट नहीं खुलती। लेकिन दलाल मिनटों में टिकट बुक करा लेते हैं।
तत्काल टिकटों के दलाल रेलवे के सिस्टम को मात देने के लिए कुछ ऐसा दिमाग चलाते हैं कि आम लोग अपने बेव ब्राउजर को रिफ्रेश करते रहते हैं और टिकट दलालों के हो जाते हैं।
ऐसे तत्काल सिस्टम को मात दे देते हैं रेलवे टिकटों के दलाल.
1. दलाल आईआरसीटीसी की वेबसाइट खोलने के लिए फास्ट इंटरनेट कनेक्शन का इस्तेमाल करते हैं ताकि सर्वर से जल्दी जुड़ सकें। अक्सर दलाल एमटीएनएल या बीएसएनएल का कनेक्शन इस्तेमाल नहीं करते।
2. 8 बजे से 9 बजे के बीच एक आईपीए एड्रेस से दो ही तत्काल टिकट बुक किए जा सकते हैं लेकिन दलाल अपने सिस्टम का आईपी एड्रेस ही बदल देते हैं। ऐसा करने के लिए वो अपने इंटरनेट मोडम को बंद करके दोबारा चालू कर देते हैं। अक्सर मोडम बंद करके दोबारा चालू करने पर सिस्टम का आईपी एड्रेस बदल जाता है। पांच मिनट से ज्यादा देर तक मोडम को बंद करके या फिर इंटरनेट केबल को निकालकर दोबारा लगाने पर आईपी पता अक्सर बदल जाता है। ऐसा करके दलालों को नया आईपीए एड्रेस मिल जाता है और रेलवे का सिस्टम उन्हें ब्लॉक नहीं कर पाता।
एकोऽहम्
अपने धन्धे, दलाली के लिए फकीरचन्दजी का आधार था: सम-भाव। ब्याज पर पूँजी देनेवाले और लेनेवाले, दोनों के प्रति सम-भाव। दोनों ही व्यापारियों को वे बराबरी से महत्व देते थे। उन्होंने दोनों के बीच कभी भेद-भाव नहीं किया। पूँजी देनेवाले को बड़ा और लेनेवाले को छोटा नहीं माना। दोनों व्यापारी भले ही एक दूसरे को छोटा-बड़ा मानते हों लेकिन फकीरचन्दजी के लिए तो दोनों, बराबरी से रोजी देनेवाले व्यापारी थे। इसलिए जितनी चिन्ता वे देनेवाले की पूँजी की सुरक्षा की करते थे उतनी ही चिन्ता लेनेवाले की, ‘बाजार में बने रहने’ की करते थे। उनका मानना था कि देनेवाला (ज्यादा दर से ब्याज लेने के) लालच में लेनेवाले पर देनदारी का वजन बढ़ा कर उसे दिवालिया होने की दिशा में धकेल सकता है। तब दोनों का नुकसान तो जो होना होगा, होगा लेकिन बड़ा नुकसान बाजार का होगा। एक व्यापारी के दिवालिया होने पर बाजार लम्बे अरसे तक ठप्प हो जाता है। देनेवाले और लेनेवाले तमाम व्यापारी दहशत में आ जाते हैं। इसलिए फकीरचन्दजी का विश्वास, दोनों व्यापारियों के, सुरक्षित बने रहने में रहता था। इससे तनिक आगे बढ़कर वे लक्ष्मी को ‘चंचला’ कहते थे। कहते थे, ये आज इसके पास है तो कल उसके पास। तब आज का देनेवाला कल का लेनेवाला हो सकता है और आज का लेनेवाला कल का देनेवाला। दोनों जहाँ भी रहेंगे, जैसे भी रहेंगे, उनके ‘व्यवहारी’ ही रहेंगे। इसलिए, उन्होंने दोनों ही व्यापारियों के प्रति सदैव सम-भाव वापरा, दोनों को बराबरी का दर्जा दिया और दोनों की एक जैसी चिन्ता की।
कर्मचारी ट्रैफिक में फंस जाते हैं दलाल लोगों को फांसते रहते हैं
बिस्कोमानभवन स्थित जिला परिवहन कार्यालय में सुबह साढ़े सात बजे ही काफी भीड़ जमा हो चुकी थी। डीबी स्टार टीम कार्यालय में दाखिल हुई तो पता चला कि नालंदा विवि में परीक्षा है। परीक्षा शुरू होते ही बिस्कोमान भवन का पूरा परिसर ही खाली हो गया, कुछ लोग रह गए जो अपने परिजनों को परीक्षा दिलाने आए थे या फिर गाड़ी के संबंध में अपने कागजों को दुरुस्त कराने आए थे। डीबी स्टार टीम ने जिला परिवहन कार्यालय और उससे संबंधित दो अन्य कार्यालयों के चक्कर लगाए। सभी जगह ताला लटका था।
सफाईकर्मीने खोला गेट
चौथीमंजिल पर जिला परिवहन कार्यालय का ताला 8.45 मिनट पर सफाईकर्मी ने खोला। तीन सफाईकर्मी दाखिल हुए और अंदर से ताला बंद कर लिया। साफ-सफाई का काम साढ़े नौ बजे तक चलता रहा। 9 बजकर 35 मिनट पर गार्ड ने गेट खटखटाया तो सफाईकर्मी ने ताला खोला और फिर से पहले की तरह ही अंदर से ताला बंद कर लिया। इस दौरान गेट पर लाइसेंस बनवाने वाले, गाड़ी का कागज ठीक कराने वाले लोगों की भीड़ बढ़ गई।
चोरों और दलालों का देश भारत
दुनिया में सबसे भ्रष्ट और चोरों में सबसे अब्बल दर्जा पाने को आतुर हमारा यह प्यारा देश दलाली के एक अद्भूत संक्रमण काल से गुजर रहा है. सत्ता के शिखर से लेकर नीचे आम जनता तक तेजी से फिसल रही यह दलाली की आदतें सम्पूर्ण देश के जनमानस में समा गयी है. यही कारण है कि यहां कोई भी भ्रष्टाचार का खुलासा किसी प्रकार का कोई हलचल पैदा नहीं करता. जिस राष्ट्र का नाम सहित संस्कृति और अर्थव्यवस्था तक विजेताओं और आक्रांताओं के इच्छानुसार रखा जाता है, उसका कोई एक नाम, संस्कृति और अर्थव्यवस्था हो ही नहीं सकता. हमारा देश इसका सर्वोत्तम उदाहरण है.
भारत का सम्पूर्ण इतिहास ही विजेताओं और आक्रांताओं का इतिहास है. प्रत्येक विजेता और आक्रांताओं ने इसे अपने इच्छानुसार अलग-अलग नाम से, संस्कृति से और अर्थव्यवस्था से नवाजा है, जो इसके विभिन्न नामों से स्पष्ट होता है. अभी जब हमारे देश के लोग अमरीका की दलाली करने में मशगुल है, इसका एक नया नामकरण दिये जाने की भी मांग कुछ समय पहले उठा था – संयुक्त राष्ट्र अमरिका के तर्ज पर संयुक्त राष्ट्र इंडिया. पर यह नाम स्वीकार नहीं किया गया. यह हमारी दलाल मानसिकता को दर्शाता है. यह नया प्रायोजित नाम अपने नये विजेता और आक्रांता संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के स्वागत में रखने की कोशिश का एक अद्भूत नमूना था.
क्या है पूरा मामला
आपको बता दे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सितंबर 2022 से पुरानी पेंशन योजना राज्य कर्मी के लिए बहाल कर दी। वित्त विभाग ने कर्मियों के न्यू पेंशन योजना से पुरानी पेंशन योजना में बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इस प्रक्रिया के तहत शपथ पत्र दाखिल करने, जीपीएफ अकाउंट खोलने के लिए आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए। यह कार्य वेतन भुगतान करने वाले पदाधिकारी और कार्यालय को किया जाना है। इसके लिए कार्यालय कर्मी को प्रशिक्षण भी दिया गया।
झारखंड में पुरानी पेंशन योजना बहाल क्या हुई सरकारी दलाल में कमाने की होड़ लग गई। पहले तो कर्मियों की अपने से ऑनलाइन करने से रोका गया उसके बाद जब मामला बढ़ा तो कार्यालय बाबू ने तरह तरह के डर दिखाने शुरू कर दिए …
मसलन ऑनलाइन फॉर्म गलत होने पर जवाबदेही कर्मियों की होगी, जीपीएफ ऑफिस में हार्ड कॉपी खुद जमा करना होगा, जीपीएफ कार्यालय खुद मैनेज करना होगा, जान बूझकर बेसिक पेमेंट को अपडेट नहीं किया जाता रहा, शपथ पत्र पर डीडीओ अपने दलाल दर के हस्ताक्षर कराने में जानबूझकर आनाकानी और देरी करना और भी इस तरह के कुछ अनावश्यक तथ्यों का हवाला देकर कर्मियों को अपनी गिरफ्त में सरकारी दलालले रहे हैं।
सब कार्य के लिए रेट चार्ट अलग अलग
NPS to OPS के जो कार्य कार्यालय को करना है अब कर्मी अपने काम छोड़कर कार्यालय के चक्कर लगाने में व्यस्त हैं। जिसकी विभागीय पदाधिकारी को कोई अपने दलाल दर चिंता नहीं। प्राप्त जानकारी के अनुसार कर्मियों को सिर्फ एक बार अपने कार्यालय में उपस्थित होना पड़ता है जिसमें हस्ताक्षर और एफिडेफिट कार्य शामिल है। परंतु कभी झार नेट का हवाला तो कभी कार्यालय की व्यवस्था दिखाकर जानबूझकर कर्मचारियों को चक्कर लगाने पर मजबूर किया जाता है ताकि कर्मचारी सुविधा शुल्क देने को तैयार हो जाए।
सबसे मजेदार बात यह है कि कार्यालय के सरकारी दलालों ने अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग रेट चार्ट तय कर रखे हैं।
शपथ पत्र और नॉमिनेशन 500.00
शपथ पत्र एफिडेफिट 200.00 से 500.00
ऑनलाइन अपलोडिंग 500.00 (डीडीओ हस्ताक्षर)
जीपीएफ ऑफिस खर्चा 500.00 से 1000.00
कर्मी अपने इच्छानुसार अलग अलग कार्य करा सकते हैं या फिर सरकारी दलालों ने एक पैकेज भी बना रखा है जिसकी दर 1000 से 2000 के बीच रखी गई है। इस पैकेज के तहत दलाल एक मुश्त पैसे लेकर जीपीएफ no आवंटित कराने की जिम्मेवारी लेते हैं। और उन कर्मी को क्रैक सेवा के तहत जीपीएफ no निर्गत कराए जाने की भी सुविधा उपलब्ध है।
NMOPS के पदाधिकारी रखे हैं पैनी नजर – प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत कुमार सिंह
NMOPS के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत कुमार सिंह का कहना है की पैसे की लेनदेन की शिकायत कई जिलों के कार्यालय से आ रही है, साथ ही पैसे के लेन देन के लिए मोटिवेट किया जा रहा है। जिस पर हमारी टीम की पैनी नजर है। कई कार्यालय के कर्मी और पदाधिकारी की शिकायत, कॉल रिकॉर्डिंग संगठन तक पहुंच चुकी है। जो भी कर्मी और पदाधिकारी भयादोहन कर भ्रष्ट्राचार में लिप्त पाए जाएंगे उनकी शिकायत सीधे तौर पर मुख्यमंत्री कार्यालय, वित्त विभाग और भविष्य निधि निदेशालय में अपने दलाल दर की जायेगी।
गोड्डा की NMOPS टीम भविष्य निधि पदाधिकारी की ज्ञापन सौंपते हुए
गोड्डा जिला के कोषागार पदाधिकारी सह जिला भविष्य निधि पदाधिकारी उमेश चंद्र दास जो स्वयं NPS से OPS के रास्ते पर हैं, का कहना है मैने कार्यालय स्तर से जीपीएफ अकाउंट no देने में देरी नहीं करने,और पैसे के लेन देन नहीं करने की सख्त हिदायत दे रखी है। प्रतिदिन मॉनिटरिंग मेरे द्वारा किया जाता है। कुछ फॉर्म में त्रुटियों के कारण विलंब हो रही हैं।