भारत में विदेशी मुद्रा व्यापार के लिए रणनीतियाँ

महंगाई से बचाव

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महंगाई से बचने के 10 उपाय

[ ईटी ब्यूरो | नई दिल्ली ]कंज्यूमर और इनवेस्टर्स अभी अच्छे दिन का इंतजार ही कर रहे थे कि महंगाई बेकाबू हो गई। मई में होलसेल इनफ्लेशन 6.

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महंगाई से निपटने के कुछ सटीक उपाय

महंगाई का शोर सुन-सुनकर मेरा माथा दर्द करने लगा। जिसे देखो, उसी को महंगाई की चिंता। अरे भाई, आपकी इनकम बढ़ रही है, तो इतना शोर क्यों? फिर भी इससे निपटने के कुछ ठोस तरीके आपसे शेयर कर रहा हूं। सुनिए.

महंगाई से निपटने के कुछ सटीक उपाय

महंगाई का शोर सुन-सुनकर मेरा माथा दर्द करने लगा। जिसे देखो, उसी को महंगाई की चिंता। अरे भाई, आपकी इनकम बढ़ रही है, तो इतना शोर क्यों? फिर भी इससे निपटने के कुछ ठोस तरीके आपसे शेयर कर रहा हूं। सुनिए, तनख्वाह महंगाई से बचाव बढ़ गई, लेकिन जरूरी नहीं कि परिवार भी बढ़े। परिवार छोटा होगा, तो बड़ा मकान भी नहीं बनवाना होगा। छोटी कार से ही काम चल जाएगा।

सुबह-सुबह थोड़ी-सी चहलकदमी करके दवाइयों की बचत की जा सकती है। रसोई गैस को लेकर न जाने लोग टेंशन में क्यों हैं। हमारे पूर्वज पका हुआ भोजन कम ही करते थे। कच्चे-ताजे फल, सब्जियां खाकर गैस बचा सकते हैं। दूध गरम करने का भी झंझट क्यों पालें! कई लोग खा-खाकर पेट बढ़ा रहे हैं। डॉक्टर कहते-लिखते थक गए कि कम खाओ, स्वस्थ रहो। हम घर में बिजली क्यों जलाते हैं? आप कहोगे रोशनी के लिए। मैं भी यही कहूंगा। यह काम एक टय़ूब लाइट से भी तो चल सकता है। पर नहीं, आप ऐसा करेंगे नहीं। जब तक हर कमरे में चार-पांच फैंसी लाइटें नहीं लगेंगी, ड्रॉइंगरूम में झूमर और उसमें दजर्नों बल्ब नहीं लगेंगे, तब तक काम नहीं चलता। जो लोग अखबारों से लेकर टीवी चैनलों तक पर महंगाई के खिलाफ भाषण देते हैं, वे ही महंगे ब्रांडेड जूते, पैंट पहनते हैं और बीस रुपये में नौ दाना चिप्स खाते हैं।

गांधीजी बैरिस्टर थे। ब्रिटेन में पढ़े, बावजूद इसके एक धोती में ही जीवन गुजार दिया। इसी सादगी ने उन्हें राष्ट्रपिता बना दिया। मेरे गांव में निरहू का परिवार आज भी गेहूं की रोटी, अपने खेत की अरहर, मसूर, चना, मटर की दाल, दो हरी मिर्च और अपने ही खेत का प्याज खाकर लंबी डकारें लेता है। उसे रात भर नींद भी अच्छी आती है। सर्दी-जुकाम, बुखार में तो पूरा परिवार तुलसी की पत्तियों का काढ़ा पीकर ठीक हो जाता है। मैं समझता हूं, बचत के इन तरीकों पर अमल करके कोई भी महंगाई पर रोएगा नहीं। सरकारों को कोसेगा नहीं। आखिर हमारी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं। हमारे बुजुर्गो ने यह भी तो कहा है कि जो खुद की मदद नहीं कर पाता, उसकी मदद खुदा भी नहीं करते।

महंगाई रोकने के सरकारी उपाय

पिछले कुछ महीनों से देश में बढ़ती महंगाई के मद्देनजर केन्द्र सरकार जो चहुंमुखी कदम उठा रही है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि शीघ्र ही खुले बाजारों में इसका असर दिखाई देगा और खाद्य वस्तुओं समेत अन्य उपभोक्ता सामग्री के दामों में ठंडक आयेगी।

महंगाई रोकने के सरकारी उपाय

पिछले कुछ महीनों से देश में बढ़ती महंगाई के मद्देनजर केन्द्र सरकार जो चहुंमुखी कदम उठा रही है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि शीघ्र ही खुले बाजारों में इसका असर दिखाई देगा और खाद्य वस्तुओं समेत अन्य उपभोक्ता सामग्री के दामों में ठंडक आयेगी। मगर यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि इस तरफ ध्यान देने में सरकार को इतना समय क्यों लगा? महंगाई निश्चित रूप से अन्तर्राष्ट्रीय समस्या हो चुकी है और रूस- यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद इसने विकराल रूप भी धारण किया। इसका प्रमाण यह है कि अमेरिका जैसे देश में ही यह रिकार्ड स्तर पर पहुंच चुकी है जिसकी वजह से वहां की जनता में भी बेचैनी है परन्तु भारत के सन्दर्भ में यह ध्यान रखना होगा कि इसकी अर्थव्यवस्था के मूल आधारभूत मानक अपेक्षाकृत सारी महंगाई से बचाव दुनिया में मजबूत माने जा रहे हैं जिसकी वजह से यहां विदेशी निवेश की रफ्तार में मामूली कमी ही दर्ज हुई है परन्तु भारत महंगाई से बचाव में खाद्य वस्तुओं के दामों में पिछले दो महीने के दौरान जो तेजी आयी है वह स्वाभाविक रूप से चिन्ता का विषय है क्योंकि कोरोना काल के दो वर्षों के भीतर आम आदमी की आमदनी में खासी गिरावट दर्ज हुई है और इसकी भरपाई अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर आठ प्रतिशत तक पहुंच जाने के बावजूद नहीं हुई है अतः सरकार ने खाद्य मोर्चे पर कीमतों को नियन्त्रित करने के लिए जो ताजा कदम उठाये हैं उनका आर्थिक विश्लेषण किये जाने की भी जरूरत है।

स्वाभाविक तौर पर विपक्षी दलों को इस मोर्चे पर सरकार की आलोचना करने का पूरा अधिकार है और वे कर भी रहे हैं किन्तु उन्हें यह भी सोचना होगा कि महंगाई और बेरोजगारी ऐसे शाश्वत विषय हैं जिन्हें लेकर आजादी के बाद से विपक्ष में बैठे राजनीतिक दल हर सरकार की आलोचना करते आ रहे हैं। महंगाई का सम्बन्ध वैसे तो ‘मांग व आपूर्ति’ से जुड़ा होता है परन्तु कुछ ऐसे अन्य आर्थिक अवयव भी होते हैं जो इस पर सीधा असर डालते हैं जैसे पैट्रोल व डीजल के घरेलू दाम। विगत अक्तूबर महीने से लेकर अब तक केन्द्र सरकार दो बार इन दोनों उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में कमी कर चुकी है और कुछ राज्य सरकारों ने भी इस पर लगने वाले बिक्री कर या वैट को भी कम किया है इसके बावजूद पैट्रोल के दाम 100 रुपए प्रति लीटर के आसपास ही बने हुए हैं। दूसरी डालर की कीमत में भी इजाफा हुआ है यह 77 रुपए प्रति डालर के पास पहुंच चुका है। तीसरी तरफ अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दामों में गरमाहट कम होने का नाम नहीं ले रही है। इसे देखते हुए केन्द्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क में कमी करने का फैसला स्वागत योग्य कदम कहा जायेगा जिसका असर विभिन्न आवश्यक वस्तुओं की मालभाड़े की दरों में कमी लाने वाला होना चाहिए।

लोकतन्त्र में सरकार कोई धर्मादा संस्था भी नहीं होती है क्योंकि वह लोगों से ही राजस्व वसूल करके वापस लोगों को ही देती है। राजस्व या शुल्क वसूलने में उसे इस तरह न्यायसंगत रहना पड़ता है कि समाज के गरीब वर्ग के लोगों पर उसकी शुल्क नीति का कम से कम प्रभाव पड़े अर्थात गरीब वर्ग के लोगों की दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं के दामों में वृद्धि न होने पाये। इसके साथ ही खुली व बाजार मूलक अर्थव्यवस्था में घरेलू उद्योग से लेकर विभिन्न वाणिज्यिक संस्थानों के हितों का संरक्षण भी उसे इसी नीति के तहत करना होता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए किसानों से लेकर मजदूरों के हितों का संरक्षण भी करना होता है। यह कार्य उसे जनता की क्रयशक्ति के अनुपात को ध्यान में रख कर करना होता है। जब यह अनुपात बिगड़ जाता है तो महंगाई बढ़ने लगती है। इसके साथ ही सरकार को उत्पादन मोर्चे पर भी कान खड़े रखने होते हैं जिससे बाजार में किसी भी वस्तु की मांग को पूरा किया जा सके। इस सन्दर्भ में मोदी सरकार ने हाल ही में जो कदम उठाये हैं उहें पूर्णतः घरेलू अर्थव्यवस्था मूलक कहा जायेगा।

भारत में किसी भी जरूरी खाद्य सामग्री की आपूर्ति में कमी न हो सके इसके लिए सरकार ने सबसे पहले गेहूं के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने की घोषणा की। इसके बाद उसने चीनी के निर्यात पर शर्तें लगाई और घोषणा की आगामी गन्ना सीजन के शुरू होने पर अक्तूबर 2021 से सितम्बर 2022 तक केवल 100 लाख मीट्रिक टन ही चीनी निर्यात की जा सकेगी। भारत विश्व में चीनी के तीन प्रमुख देशों में से एक है। ये कदम इसलिए उठाये गये जिससे बाजारों में गेहूं, चीनी महंगाई से बचाव की आपूर्ति की बहुतायत लगातार बनी रहे। दूसरी तरफ खाद्य तेलों के दामों में गर्मी देखते हुए सरकार ने फैसला किया कि अगले महंगाई से बचाव दो वर्षों के दौरान भारत का कोई भी व्यापारी या वाणिज्यिक संस्थान 20 लाख टन सोयाबीन तेल व सूरजमुखी तेल का आयात बिना कोई आयात या तट कर शुल्क दिये कर सकेगा। खाद्य तेलों के बारे में हम जानते हैं कि इसकी मांग को पूरा करने के लिए 56 प्रतिशत आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।

पिछले दिनों पाम आयल के आयात में कमी आने और यूक्रेन व रूस के सूरजमुखी तेल के प्रमुख निर्यातक देश होने की वजह से खाद्य तेलों के आयात में कमी आयी जिसकी वजह से इनके भाव बढे़। हालांकि पिछले वर्ष ही इनके दामों में काफी उछाला आया था मगर सरकार ने उसे आयात शुल्क में कमी करके साधना चाहा जिसमें वह सफल नहीं हो सकी अब शुल्क मुक्त आयात की इजाजत देने से गुणात्मक अंतर की अपेक्षा की जा सकती है। अब सरकार भारत महंगाई से बचाव महंगाई से बचाव के भंडार में जमा चावल की मिकदार की भी समीक्षा कर रही है और इसके निर्यात पर भी प्रतिबन्ध लगा सकती है। दूसरी तरफ इसके उलट सरकार ने स्टील के निर्यात पर शुल्क की दर बढ़ा दी है जिससे घरेलू बाजार में इसके दामों में ठंड़क आये। प्रसन्नता की बात यह है कि कृषि मोर्चे पर भारत के उत्पादन में लगातार वृद्धि ही हो रही है जिसकी वजह से आम जनता निश्चिन्त रह सकती है परन्तु अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के दामों की समीक्षा भी की जानी चाहिए और वस्तुओं पर लिखे जाने वाले अधिकतम मूल्य (एमआरपी) को समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि महंगाई बढ़ने का यह भी प्रमुख औजार है।

महंगाई से बचने का सही 'निवेश' है बड़ा हथियार, बस कमाई ही दिखाएगी दम

इक्विटी को इन्वेस्टमेंट प्लानिंग का हिस्सा बनाएं, क्योंकि इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करना बेहतर होता है.

जरूरी है कि आप ऐसी जगह निवेश करें, जहां आपको महंगाई (Inflation) को मात देने वाला रिटर्न मिले.

आसमान छूती महंगाई (Inflation) के सामने आम आदमी की कमाई अक्सर हार जाती है. कई बार हमारी बचत भी काफी नहीं होती हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप ऐसी जगह निवेश करें, जहां आपको महंगाई (Inflation) को मात देने वाला रिटर्न मिलें. जरूरी है कि आप ऐसा निवेश करें जो आपको रिटर्न दिलाए महंगाई मार के.

मनी गुरु (Money Guru) में हम आपको बताने वाले हैं उन इंस्ट्रूमेंट्स के बारे में, जहां आपको रियल रिटर्न मिलेगा और बताएंगे कि कैसे आप भविष्य के अपने लक्ष्यों को आज इंफ्लेशन प्रूफ कर सकते हैं.

रियल रेट ऑफ रिटर्न
आनंदराठी वेल्थ मैनेजमेंट के डिप्टी CEO फिरोज अजीज महंगाई को मात देने के लिए रियल रेट ऑफ रिटर्न के फार्मूले पर बात करते हैं. उनके मुताबिक, महंगाई एडजस्ट करने के बाद रियल रिटर्न मिलता है. अगर आज आपने 100 रुपये का निवेश किया, 1 साल बाद आपको महंगाई से बचाव 110 रुपये मिलते हैं. आज 100 रुपये की चीज 1 साल बाद 108 रुपये की हो जाती है. ऐसे में आपका रियल रियल रेट ऑफ रिटर्न 2% होगा.

महंगाई के आंकड़े
महंगाई दर (Inflation Rate) फिर से 4% के ऊपर पहुंची है. अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर 4.62% रही. सितंबर में यह दर 3.99% दर्ज की गई थी. पिछले साल अक्टूबर में खुदरा महंगाई 3.38% रही थी.

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महंगाई को करें कैलकुलेट
व्यक्तिगत स्तर पर खर्च साल-दर-साल काफी तेजी से बढ़ते हैं. हमारे खर्चों में हर महंगाई से बचाव साल 10-12% की दर से बढ़ोतरी होती है. मेडिकल और शिक्षा का खर्च भी हर साल बढ़ रहा है. ऐसे में जब भी लंबी अवधि के लक्ष्य तय करें तो औसत महंगाई की गणना 8-10% के बीच करनी चाहिए.

महंगाई को मात देगा FD
फिक्स्ड डिपॉजिट में रिटर्न बहुत कम होते हैं. FD पर ब्याज दरों में लगातार कटौती हो रही है. पोस्ट टैक्स रिटर्न भी बेहतर नहीं होता है. इसलिए महंगाई को मात देने में फिक्स्ड डिपॉजिट कारगर नहीं है.

डेट फंड
फिक्स्ड डिपॉजिट के बजाय डेट फंड बेहतर विकल्प हैं.
डेट म्यूचुअल फंड का डेट इंस्ट्रूमेंट में निवेश होता है.
बॉन्ड, डिबेंचर्स, सरकारी सिक्योरिटीज आदि डेट इंस्ट्रूमेंट कहलाते हैं.
डिपॉजिट सर्टिफिकेट, कमर्शियल पेपर भी महंगाई से बचाव डेट इंस्ट्रूमेंट होते हैं.
अलग-अलग वित्तीय लक्ष्यों के लिए अलग-अलग डेट फंड होते हैं.
फिक्स्ड डिपॉजिट से बेहतर रिटर्न देने की क्षमता है.
टैक्स के मोर्चे पर भी FD से बेहतर, इंडेक्सेशन बेनेफिट मिलता है.

इक्विटी
इक्विटी को इन्वेस्टमेंट प्लानिंग का हिस्सा बनाएं, क्योंकि इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करना बेहतर होता है. इक्विटी में लंबी अवधि के लिए निवेश करें. लंबी अवधि में 12-15% रिटर्न मिल सकता है. बच्चों की पढ़ाई, शादी जैसे लक्ष्यों के लिए इक्विटी बेहतर होते हैं.

इक्विटी में कैसे करें निवेश?
इक्विटी में निवेश जोखिम क्षमता के मुताबिक करें.
कम जोखिम तो लार्ज कैप में ज्यादा एक्सपोजर रखें.
मोडरेट इन्वेस्टर हैं तो लार्ज और मिड कैप फंड बेहतर.
एग्रेसिव इन्वेस्टर हैं तो मिड कैप में एक्सपोजर बढ़ाएं.

गोल्ड
गोल्ड महंगाई के खिलाफ हेज का काम करता है. लंबी अवधि में अगर महंगाई 6% की दर से बढ़ी है तो गोल्ड की बजाय इक्विटी/डेट में निवेश ज्यादा बेहतर होता है. इक्विटी और डेट फंड 6% से ज्यादा रिटर्न देने में सक्षम होते हैं.

इंटरनेशनल फंड
अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक्सपोजर मिलता है.
ऐप्पल, फेसबुक, गूगल जैसी कंपनियों में एक्सपोजर.
भारत में लिस्टेड न होने वाली कंपनियों में निवेश.
लंबी अवधि में इंटरनेशनल फंड का प्रदर्शन अच्छा नहीं.
लंबी अवधि में घरेलू फंड्स ने दिया है बेहतर रिटर्न .

रेंटल इनकम
किराये से आमदनी कुछ हद तक महंगाई की मार को कम करने में मदद कर सकती है. इसलिए बढ़ती महंगाई के अनुसार किराये में बढ़ोतरी करें.

लोन रीपेमेंट
लोन रीपेमेंट करने से पहले हिसाब लगाएं. देखें कि निवेश से ज्यादा फायदा या रीपेमेंट से. मान लीजिए आपका लोन 1 करोड़ रुपये का है. हाउस प्रॉपर्टी से लॉस 2 लाख रुपये है. 10 साल का लोन है 9% की ब्याज के हिसाब से. पोस्ट टैक्स आपका ब्याज 8% होगा. निवेश में 8% से ज्यादा मिल रहा है तो ऐसे में लोन रीपेमेंट करना बेहतर नहीं है.

डायवर्सिफिकेशन और महंगाई
पोर्टफोलियो में डायवर्सिफिकेशन होना बेहद जरूरी.
डायवर्सिफिकेशन जोखिम कम करने में करता है मदद.
डायवर्सिफिकेशन का मतलब अलग-अलग जगह निवेश.
अलग-अलग असेट क्लास में निवेश है डायवर्सिफिकेशन.
एक का प्रदर्शन खराब तो दूसरे का प्रदर्शन देगा सहारा.

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